मेरे ब्लॉग के सभी सुधी पाठकों को स्वागत है................................
मैंने इस ब्लॉग की संकल्पना काफी दिन पहले कर ली थी.लेकिन इस भागमभाग जिंदगी में समय की तंगी के कारण इस संकल्पना को साकार करने में काफी समय लग गया.लेकिन एक मशहूर पुरानी कहावत है देर आये दुरुस्त आये .और आज यह ब्लॉग आप सभी के सामने है.मेरा यह ब्लॉग मुकुल एक्सप्रेस मेरे गुरु जी की प्रेरणा का नतीजा है.वह अकसर हम सभी छात्रों से कहा करते है कि बेटे लिखना लिखने से आता है.अतः यह ब्लॉग हमारे सर जी डॉ. मुकुल श्रीवास्तव को सादर समर्पित है.
मैंने इस ब्लॉग की संकल्पना काफी दिन पहले कर ली थी.लेकिन इस भागमभाग जिंदगी में समय की तंगी के कारण इस संकल्पना को साकार करने में काफी समय लग गया.लेकिन एक मशहूर पुरानी कहावत है देर आये दुरुस्त आये .और आज यह ब्लॉग आप सभी के सामने है.मेरा यह ब्लॉग मुकुल एक्सप्रेस मेरे गुरु जी की प्रेरणा का नतीजा है.वह अकसर हम सभी छात्रों से कहा करते है कि बेटे लिखना लिखने से आता है.अतः यह ब्लॉग हमारे सर जी डॉ. मुकुल श्रीवास्तव को सादर समर्पित है.
अब मैं अपने बारे क्या बताऊ...? ,बचपन में कभी माँ ने सर्वप्रथम मेरे हाथो में एक नन्ही सी पेन्सिल पकड़ाई थी और लिखने के लिए कुछ सादे पन्ने दिए थे,उन पन्नों पर मैंने क्या लिखा माँ आज भी बताती है,कि वह पढ़ नहीं सकी.क्योकि वह चंद उल्टी-सीधी खिची लाईने थी.लेकिन जैसे-जैसे बचपन से युवावस्था में कदम पड़े,तो समझ में आया,कि माँ ही बच्चे की सर्वप्रथम पाठशाला होती है.एक बार माँ द्वारा बचपन में पकड़ायी गयी पेन्सिल आज भी हाथ से नहीं छूटी बस आज कुछ उसका स्वरूप बदल गया है.कभी हाथ में पेन के रूप में,तो कभी कम्प्यूटर का की-बोर्ड और स्क्रीन पर उभरते काले अक्षर के शब्दों के रूप में,लेकिन शब्द तो शब्द है कुछ न कुछ कह कर जाते है.इन्ही शब्दों के साथ अपने कुछ विचारों के साथ आप सभी पाठकों के सामने उपस्थित हूँ.और आप सभी समय-समय पर अपने विचारों और टिप्पणियों से हमारा मार्गदर्शन करते रहे,जिससे हमारे ये शब्द रुपी विचारों का सही ढंग से प्रस्तुति हो सके.
----पत्रकार नन्हा सिहं
----पत्रकार नन्हा सिहं
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