Friday, September 28, 2012

भारतीय समाज का ऐतिहासिक स्वरूप

मारा भारतीय इतिहास तीन भागो में बाटा गया है : प्राचीन भारत,मध्यकालीन भारत एवं आधुनिक भारतीय इतिहास | प्राचीन भारतीय इतिहास सैन्धव सभ्यता से प्रारंभ होकर,1000 ई० में उत्तर भारत में तुर्को के आक्रमण के साथ समाप्त हुआ | मध्य कालीन इतिहास तुर्की आक्रमण के बाद से लेकर अठारहवीं शताब्दी में बंगाल में  अंग्रेजो के आगमन के साथ समाप्त हुआ | अंग्रजों के भारत आगमन से लेकर आज तक के इतिहास को आधुनिक भारतीय इतिहास को कहा गया है | यह विभाजन प्राचीन काल  को हिन्दुओ से एवं मध्यकालीन काल को मुस्लिमों से बराबर-बराबर जोड़ता है |  अतः भारतीय संस्कृति को मोड़ने वाले एकमात्र मूल कारक धर्म की चर्चा करना जरुरी है | प्राचीन काल में,हिंदू धर्म ने भारतीय संस्कृति एवं भारतीय परम्परा के विकास में बहुत बड़ी भूमिका अदा की थी | मध्यकाल में इस्लाम धर्म ने हमारी संस्कृति एवं परम्पराओं को गहराई से प्रभावित किया | बाद ,में आधुनिक काल में ब्रिटिश साहित्य एवं संस्कृति ने हमारी सामाजिक एवं धार्मिक परम्पराओं तथा विश्वासों में अनेक सुधार किया | इन सुधारों ने हमारी भारतीय संस्कृति एवं परम्पराओं को गहराई के साथ बदलने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की थी  |
सांस्कृतिक  विकास 
सैन्धव  संस्कृति का विस्तार प्राचीन सभ्यता के सर्वाधिक विस्तृत क्षेत्र तक फैला था | इसके विस्तार क्षेत्र में पंजाब एवं सिंध तथा गुजरात का कठियावाड. एवं राजस्थान का क्षेत्र आता था | लेकिन यह आज तक स्पष्ट नही हो सका है,कि सैन्धव सभ्यता के वास्तविक निर्माता कौन थे? ज्यादा संभावना यही की जाती है,कि वे लोग भूमध्यसागरीय न्रवंश के थे और भारतीय द्रविड़ लोगों के साथ उनके सहसंबंध थे और जिनका विस्तार कालांतर में भारतीय गंगाघाटी में मूल रूप में बसे लोगो के साथ रहा | आर्यों के आक्रमण के बाद द्रविड़ लोग सतपुड़ा पर्वत माला पारकर भारत के दक्षिणी हिस्सों में चले गये | पुरातात्विक साक्ष्य यह स्पष्ट करते हैं,कि हड़प्पन संस्कृति के लोग लिंग पूजक थे और द्रविड़ संस्कृति पर इनके पूजा विश्वास का व्यापक प्रभाव आज भी देखने को मिलता है | हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो के भग्नावशेष उस समय की श्रेष्ठ नगरी संस्कृति तथा जलनिकासी,संग्राहण तथा नगर नियोजन का सर्वोत्तम प्रबंधन आज भी आश्चर्य चकित कराते हैं |
सैन्धव संस्कृति के लोग कृषि कार्य का विकास करने वाले प्रारंभिक लोग थे | वे गेहूं एवं जौं की सबसे पहले खेती कर तथा कपास की खेती कर कपड़ा बुनने की जानकारी सर्वप्रथम देने वाले थे | कांसा जो कि ताँबा एवं टिन से मिलाकर मिस्र धातु बनती हैं,से सर्वप्रथम परिचय इन्होने ही कराया था | हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो के लोगो ने ही सबसे पहले कुम्हार के चाक का अविष्कार किया | हड़प्पा संस्कृति के लोगो के चित्राक्षर पूर्ववर्ती एवं समकालीन मेसोपोटामियन एवं मिश्र की सभ्यता से मेल खाते है | यहाँ से सैन्धव संस्कृति एवं सुमेरिया तथा मेसोपोटामिया संस्कृति में व्यापारिक संबंधो के भी साक्ष्य भारत के उत्तर एवं पश्चिम उप महाद्वीप से मिले है |
आर्यो  का आगमन 
आर्य  लोग मूलतः आल्पस पर्वत के पूर्व,जो कि यूरोशिया क्षेत्र के रूप में जाना जाता है,में निवास करते थे | वे भारोपीय भाषा जानते थे,जो कि आज भी कुछ भिन्नता के साथ यूरोप,ईरान,एवं भारतीय महाद्वीप के देश एवं भारत के उत्तर-पश्चिम हिस्सों के कुछ भाग में प्रयोग की जाती है | उत्तर भारत के लोग भारतीय आर्य भाषा बोलते है | जिसमें पंजाबी,हिंदी,उर्दू ,बंगाली भाषा-भाषी लोगो में भूमध्यसागरीय न्रवंशीय तत्व की प्रधानता आज भी कम देखने में मिलती हैं | भारतीय जनसंख्या का मूल न्रवंशीय अध्ययन में अनुसन्धान कार्य बहुत कम हुआ है | यथार्थ यह है,कि भारतीय जन्संख्या बहुविध एवं विभिन्न जातियों का अजीव मिश्रण हैं | बहुत कम ही लोग यह दावा कर सकते है कि वह किसी विशेष न्रवंश समूह से सम्बन्ध रखते है | द्रविड़ लोग जो कि पूर्व  हेलेनिक जाती वाले थे,ने सैन्धव घाटी में नगर सभ्यता का सूत्रपात किया | आर्यों के आगमन के पूर्व उन्होंने अधिकांश भारतीय क्षेत्रों में इसका विस्तार कर दिया था | कालांतर के सैन्धव लोग और अधिक उच्च विकसित बड़े नगर निर्माता थे | सिंधु घाटी के लोग वस्तुतः नगरीय लोग थे,जबकि आर्य लोग कृषक एवं यायावर-चरवाहा जाति समूह के लोग थे |
यद्यपि यह अभी तक स्पष्ट नही हो सका है,कि सिंधु घाटी के लोगो के साथ क्या घटित हुआ ? यह विश्वास किया जाता है,कि उन्हें विन्ध्य एवं सतपुड़ा पर्वत मालाओं के उस पार खदेड़ दिया गया | यह भी संभव हो कि उसमें से कुछ द्रविड़ लोग आर्यों के साथ घुल-मिल गये हो,जिन्होंने स्वंय से सैन्धव सभ्यता स्वीकार कर लिया था | प्रारम्भिक आर्यों का निवास पूर्वी पंजाब,अफगानिस्तान एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक फैला था | आर्य लोग कई खेप में आये और शनैः-शैनः स्थानीय निवासिवों पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया | आर्यों का आक्रमण में सफलता दिलाने वाले मुख्यतः उनका प्रशिक्षित घोड़ों का उपयोग,घोड़ा युक्त रथ प्रयोग एवं बेहतर हथियार के प्रयोग थे | आर्य लोग जलवायु,कृषि कार्य तथा हल चलाने,बीज बोने,फसल उगाने एवं काटने के सम्बन्ध में विशिष्ट जानकारी रखते थे |
वैदिक  सन्दर्भ में 
ऋग्वेद,सभी चारों वेद सामवेद,यजुर्वेद एवं अथर्ववेद में सबसे पुराना माना जाता है | इसमें आर्यों द्वारा अग्नि एवं वरुण देव समर्पित प्रार्थनाओं का संस्कृत भाषा में एक संग्रह हैं | ऋग्वेद की ऋचाओं का संकलन 1500 ई.पू. होना माना जाता है | ये सभी वेद आर्यों की संस्कृति के विशाल अभिलेख है | इसका परिरक्षण मौखिक परम्परा के साथ किया गया | ऋग्वेद में कारीगर समुदाय यथा बढ़ई,लोहार,बुनकर एवं कुम्हार आदि का वर्णन मिलता है |
सामाजिक  श्रेष्ठता 
ऋग्वेद में वर्णित वर्ण का निश्चित रूप से आर्यों के द्वारा प्रयुक्त त्वचा के रंग से तात्पर्य था और आर्य लोग साफ-सुथरे गोरे वर्ण वाले थे | जबकि उनके आस-पास मूल भारतीय लोगों की त्वचा का रंग श्याम वर्णित किया गया है | इस त्वचा वर्ण ने तत्कालीन समाज में सामाजिक विभाजन की उत्पत्ति में बहुत योगदान किया और इससे सामाजिक श्रेष्ठता की भावना समाज में फैली | आर्यों ने युद्ध में जिस श्याम वर्ण के लोगो को हराया,उन्हें गुलाम बनाकर उनके साथ दास एवं दासी की तरह व्यवहार किया और इनके वर्ण का नाम शुद्र रखा ,जो आगे चलकर एक सम्पूर्ण वर्ण विभाजन के स्तर के रूप में समाज में गहरी पैठ बना गया | इस वर्ण विभाजन ने तत्कालिक समाज के चार बड़े समूहों या वर्णों  यथा,ब्राम्हण (पुरोहित),क्षत्रिय (योध्दा),वैश्य(व्यापारी)एवं सामान्य जन (शुद्र-कृषक) में बाँट दिया |
प्राचीन भारत के लोग मौखिक रीति से सम्प्रेषण का कार्य करते थे | ईश्वर की पूजा का प्रधान स्वरूप मन्त्र पाठ, प्रार्थना एवं धार्मिक बलि चढ़ाने के विधान सहित था | व्यक्तिगत एवं सामूहिक सभी प्रकार की पूजाएँ जोर-जोर उच्चारित ध्वनिगान के साथ होती थी | मौखिक रूप मर मंत्रों का पाठ एवं उन्हें स्मृति पटल पर वर्षों रखे रहने की परम्परा ही आगे चलकर भारत में संचार की श्रेष्ठ प्रणाली का स्वरूप निर्धारण हेतु उत्तरदायी बनी |
उत्तर वैदिक काल 
ऋग्वेद में जिन मंत्रों को गायन योग्य बनाकर रूपांतरित किया,उनके संग्रह का नाम 'सामवेद' रखा | इसी तरह जिन मंत्रों के माध्यम से धार्मिक अनुष्ठान-नियमादि से संपन्न कराये जाते थे,उन मंत्रों के संकलन को 'यजुर्वेद' कहा गया | यह सभी उत्तर वैदिक कालीन आर्यों की सामाजिक,राजनैतिक चेतना की विविधता को दर्शाता है | अथर्ववेद में अस्त्र-शस्त्र बनाने,चलाने तथा दुष्ट आत्माओं,बीमारियो एवं टोना-टोटका आदि से मुक्ति सम्बन्धी मंत्रों का संकलन है | अनार्यों की पूजा-पद्यति का विस्तृत वर्णन भी अथर्ववेद में मिलता है |
अथर्ववेद  
उत्तर वैदिक कालीन साहित्य कि रचना लगभग 1000-600 ई.पू. में हुई थी | रामायण एवं महाभारत दो महाकाव्य इस काल के ऐसे ग्रन्थ है,जिसमें उस समय की घटित घटनाओं का वर्णन मिलता है |रामायण एवं महाभारत महाकाव्य का रचना काल 1000-700 ई.पू.के मध्य माना जाता है| षट वेदांगों में सूत्र,ग्रह्य  एव धर्मसूत्र आदि आते है | ग्रहय सूत्रों में धार्मिक कर्मकांड का वर्णन है,तो धर्म सूत्र में सामाजिक रीतिरिवाजों एवं व्यवहारों का वर्णन किया गया है | इस मध्य सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण सिद्धांत के रूप में वर्णाश्रम धर्म की स्थापना थी | वर्ण की अवधारणा ने व्यावसायिक समूह में समाज को विभाजित करने का आधार तैयार किया | वर्ण सिद्धांत के अनुसार चार वर्ण थे | इसमे प्रथम ब्राम्हण वर्ण (विद्वान एवं मार्ग प्रेणता),द्वितीय क्षत्रिय (योद्धा), तृतीय वैश्य (व्यापारी) एवं चतुर्थ वर्ण शुद्र (सामान्य जन कृषक एवं मजदूर) के रूप में कालांतर में पुख्ता हिंदू समूह बने |इसमें पाँचवी श्रेणी बहुत बाद में पंचम के रूप में जोड़ी गयी |
संगम युग : साहित्यिक योगदान 
संगम युग दक्षिण भारत के इतिहास में साहित्यिक योगदान का स्वर्ण युग माना जाता है | लगभग 500 ई.पू. से 300 ईसवी के मध्य अनेक तमिल कवियों एवं गायकों का श्रेष्ठ समूह मदुराई के आस-पास एकत्रित था |इन साहित्यिक विद्वान समूहों द्वारा अत्यंत श्रेष्ठ कोटि के तमिल साहित्य का चोल,चेर एवं पांड्य राजाओं के राज्याश्रयाधीन रहकर किया गया |
जैन एवं बौद्ध धर्म 
उत्तर वैदिक कालीन वर्ण व्यवस्था में तत्कालीन समाज में अनेक प्रकार की सामजिक विषमताओं एवं तनावों को जन्म दिया | इसमे राज्य सम्बन्धी अधिकारों से सम्बंधित कौरव एवं पाण्डव परिवार के मध्य घूमी हुई 18 दिनों तक लड़ी गयी लड़ाई से सम्बंधित अत्यन्त विस्तृत वर्णन 'महाभारत' में संस्कृत पद्य स्वरूप में वर्णित है|  यह कुरु राज्य तत्कालीन सैन्धव घाटी क्षेत्र,जो कि अब हरियाणा राज्य में आता है,कुरुक्षेत्र जनपद में स्थित था | इस महाकाव्य में धर्म सम्बन्धी जो उपदेश एवं वर्णन मिलता है,उसे सभी हिंदू समाज अत्यंत सम्मान देते है |
रामायण में वर्णित घटनाये पूर्वी उत्तर प्रदेश एवं बिहार में बहुत बाद में घटित मणि जाती है | रामायण भी विन्ध्य पर्वत श्रंखला से दक्षिण भारतीय प्रायद्वीपों तक द्रविड़ों के ऊपर आर्यों के प्रभुत्त्व का वर्णन करता है | हिन्दुवाद का मुख्य संगठन उत्तर वैदिक काल की मुख्य उपलब्धि है | इस तत्कालीन समय का साहित्य, उच्चतर दर्शन एवं धार्मिक उच्चता के विकास का वर्णन मिलता है | उत्तर वैदिक कालीन प्रमुख संस्कृत साहित्य में उत्तर वेद,ब्राम्हण ग्रन्थ,आरण्यक ग्रन्थ एवं उपनिषद में भारतीय हिंदू दर्शन की शिखर उच्चता मिलाती है | इन उपनिषदों में कर्म,माया,पुर्नजन्म,मुक्ति का सिद्धांत तथा अन्य विशिष्ट हिंदू विचार धारा विस्तृत रूप से वर्णित किये गये है और इन विचार धाराओं की अत्यंत गहरी पैठ अधिकांश भारतीय मष्तिष्क में बैठी हुई है |
उत्तर वैदिक काल महान बौद्धिक क्रियाकलापों का काल था |इस समय साहित्यिक ज्ञान को षड् वेदांगों में सुव्यवस्थित एवं प्रलेखित किया गया | शासक एवं व्यापारी (श्रेष्ठी)समुदायों ने ब्राम्हण-पुरोहित वर्ग की श्रेष्ठता को नकारना प्रारंभ कर दिया | उच्च वर्ग जो कि भौतिक सुख-साधनों से युक्त होकर समाज में विलासिता का जीवन जी रहा था,उसके प्रति शोषित एवं निम्न जाति समूह के लोगो की भावना सामाजिक असमानता के कारण दुराव पैदा करने लगी | ऐसे असामान्य विषम सामाजिक वातावरण के मध्य जैन धर्म का अवतरण हुआ | इसकी पताका को महवीर द्वारा पाँचवी सती ई.पू. में ऊँचे शिखर तक फहराया गया | इन्होने सांसारिक बंधनों से मुक्ति हेतु अहिंसा के मार्ग पर चलने एवं जीवन जीने का धर्मोपदेश दिया | महात्मा गौतम बुद्ध जो कि महावीर के समकालीन थे,ने भी अहिंसा,सत्य एवं धर्माचरण पूर्ण जीवन जीने का उपदेश देकर समाज में बराबरी का दर्जा लाने का भरकस प्रयास किया |गौतम बुद्ध के तत्कालीन समाज में नीचे के तबके के लोगो को, जो कि सामाजिक असमानता एवं अस्प्रश्यता के शिकार बने थे,उन्हें अपने धर्म में दीक्षित होने का आमंत्रण दिया | बौद्ध धर्म ने विशेषकर आर्य संस्कृति प्रभुत्त्व वाले क्षेत्रों में लोगो को अपनी ओर आकृष्ट किया | इस प्रकार पूर्वी उत्तर प्रदेश,बिहार तथा हिमालय की तलहटी में स्थिति मगध,कोशल एवं कौशाम्बी के राज्य तंत्रों ने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया तथा समस्त प्राणियों के लिए प्यार एवं सम्मान पर आधारित धर्म मार्ग को राज्य संरक्षण देकर प्रचार-प्रसार में सहयोग दिया | पालि भाषा जो कि संस्कृत भाषा की अपभ्रंश भाषा थी ओर जो सामान्य जन भाषा थी,ने बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में अत्यधिक योगदान किया | किन्तु इसकी गहरी पैठ रखने के बावजूद बौद्ध धर्म बहुत दिनों तक भारत में स्थायी नही बना रह सका | आगे चलकर बौद्ध भिक्षु लोग धनी होकर पथभ्रष्ट एवं भ्रष्टाचारी हो गये,जिससे कि गौतम बुद्ध मना करते थे तो भी बौद्ध धर्म श्रीलंका,चीन, जापान एवं सुदूरवर्ती लाओस एवं कम्बोडिया तक फ़ैल चूका था |  
बाह्य आक्रमण 
पाँचवी सदी ई.पू.के आस-पास अनेक मतमतान्तरो का अन्तर्द्वन्द्व एवं राजनैतिक उथल-पुथल उत्तर पश्चिमी क्षेत्र में था | इस राजनैतिक उथल-पुथल एवं अव्यवस्था का लाभ उठाते हुए,मुस्लिम विदेशी शासकों ने उत्तर पश्चिम भारतीय क्षेत्र में अपना क्षेत्र में अपना प्रभुत्व जमाना शुरू कर दिया | सिकंदर ने एशिया माइनर,ईराक, ईरान को विजित कर,अनन्तः काबुल और खैबर दर्रे के रास्ते भारत के पंजाब में प्रवेश कर,326 ई. पू. में पुरुषोत्तम (पोरस) को हराया|
यूनानी  आक्रमण में प्राचीन भारत एवं प्राचीन योरोप के मध्य निकटता लाने का अनेक अवसर प्रदान किया | सिकंदर ने विशाल भारतीय क्षेत्र को अपने अधीनस्थ राज्यक्षेत्र बनाया | उसके आक्रमणों ने भारत में आने हेतु समुद्री एवं स्थलमार्ग दोनों खोले एवं यूनानी व्यापारियों एवं दस्तकारों के लिए,अपना व्यापार बढ़ाने हेतु सुगमता प्रदान की | 321 ई.पू. में चंद्रगुप्त मौर्य ने अपने गुरु चाणक्य के निर्देशन में पंजाब पर चढाई कर दी और यूनानियों को वहाँ से भगा दिया | कालान्तर में उसने अपना साम्राज्य मगध,गुजरात एवं दक्षिण भारत तक विस्तृत कर लिया | चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में नियुक्ति यूनानी राजदूत मेगस्थनीज के दिए गये विवरण से तत्कालीन सामाजिक-आर्थिक स्थिति का ज्ञान प्राप्त होता है | चाणक्य द्वारा विरचित प्रसिद्ध पुस्तक अर्थशास्त्र में तत्कालीन आर्थिक एवं राजनैतिक प्रशासन का पता चलता है |चंद्रगुप्त मौर्य का पौत्र सम्राट अशोक,जिसने 274 ई.पू.में बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया,सामाजिक समता,न्याय एवं अहिंसा के सिद्धांत का आजीवन निर्वाह एवं प्रचार-प्रसार किया | लगभग 200 ई.पू. से उत्तर पश्चिम सीमांत क्षेत्रों में अनेक विदेशी आक्रांताओं का आक्रमण लगातार होता रहा | इसमे सबसे पहले हिंदुकुश सीमा पर वाले भारतीय-यूनानी थे | इन्होने संस्कृत एवं प्राकत भाषाओँ के विकास में विशेष योगदान दिया था | पार्थियन शासकों ने,जो फारस के मूल निवासी थे, भारत में पश्चिम से प्रवेश किया | इन लोगो ने मध्य ऐशिया से कुषाण लोगों के साथ-साथ प्रवेश किया | कुषाण शासकों ने उत्तर भारत से मध्य एशिया तक विशाल साम्राज्य खड़ा किया था | यूनानी,पार्शियन एवं कुषाण शासक स्थानीय भाषा,लिपि एवं संस्कृति को सीखकर भारतीय समाज के अंग बन गये | उन्होंने भारतीय संस्कृति को सम्रद्ध किया | चीन से भूमध्य सागर तक मध्य ऐशिया होकर जाने वाले मार्ग पर कुषाणों का अधिपत्थ था और इस मार्ग से होने वाले व्यापार में व्यापारियों के अतरिक्त बड़े कलाकार वर्ग भी थे | भारत में महाराष्ट्र एवं आँध्रप्रदेश से प्राप्त बौद्ध स्थापत्य कला सामग्रियों कुषाण काल की कला श्रेष्ठता को बखूबी दर्शाती है|
पश्चिमी  जगत से ईसाई धर्म का आगमन पहली शताब्दी ईस्वी में व्यापारिक नाविकों के माध्यम से पहली बार भारत में हुआ | सेंट थामस को सन 52 ईस्वी में मालाबार में आने की संभावना मानी जाती है | इसी समय अनेक मध्य पूर्वी देशो तथा मिस्र से अरब लोगों तथा व्यापारियों का व्यापार हेतु आगमन,पश्चिमी एवं दक्षिणी भारत में हुआ | यह सम्बन्ध मूलतः व्यापारिक हितों का था | यह सिलसिला बहुत काल तक जारी रहा | भारत की सम्पन्नता से आकर्षित होकर,अनेक अरबी आक्रान्ताओ से संगठित होकर अपनी विशाल सेना तैयार की? तथा  सातवीं शताब्दी ईस्वी के बाद भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग पर आक्रमण कर दिया | इसके आक्रमण का मुख्य उद्देश्य भारत से सोना एवं बहुमूल्य रत्नों-आभूषणों आदि की सम्रध्दी को लूटना तथा अपना प्रभुत्व क्षेत्र फैलाना था | सर्वप्रथम यह आक्रमण सिंधु एवं ऊपरी भारतीय क्षेत्रों में किया गया | यद्यपि 1000 ईस्वी में किये गये तुर्की आक्रमणों ने न केवल भारतीय धन सम्रद्धि को बर्बरता पूर्ण लुटा अपितु अनेक स्थानीय भारतीय शासकों की सैनिक ताकत को भी छिन्न-भिन्न कर दिया | महमूद गजनबी का पंजाब पर आक्रमण एवं आधिपत्य ने भारत में तुर्कों के प्रवेश हेतु आसान सा रास्ता दे दिया,जिसके कारण ग्यारहवीं शताब्दीं ईस्वी के दौरान मुहम्मद गोरी ने भारत के अनेक हिंदू शासकों को हराकर स्थायी मुस्लिम शासन की नींव डाल दिया तथा भारतीय राजनीति के आधार को हिलाकर रख दिया |
गुलाम  वंश के शासनाधीन दिल्ली सल्तनत के खिलजी एवं तुगलक शासकों ने न केवल उत्तर भारत में मुस्लिम शासन की नीव पक्की की,अपितु दक्षिण भारत के कनारा (वर्तमान में कर्नाटक) तक अपना साम्राज्य विस्तार किया |
मुस्लिम शासन का प्रभाव 
हिंदू  और मुस्लिम संस्कृतियों के सम्मिलन से एक नया धार्मिक आंदोलन उदभूत हुआ और इसने संगीत, कला की एक नवीन शैली को जन्म दिया | मुग़ल काल में फारसी शब्दों एवं तत्कालीन हिंदी भाषा के सम्मिलन से निर्मित उर्दू भाषा को न्यायालयीय कार्य की भाषा बनाया गया | भक्ति आंदोलन के दौरान मीराबाई,चैतन्य महाप्रभु,रामानुज,वल्लभाचार्य,कबीर एवं गुरु नानक जैसे संत महापुरुषों पर इस्लाम को गहरा पड़ा था | इन्होने पूजा,पंडितों एवं मुल्लों लोगो के प्रभुत्त्व को नकार कर सादगी एवं शुध्दाचरण तथा विश्वास पर आधारित समर्पण भावना का उपदेश लोगो को दिया | कबीर दास का हिंदी साहित्य की सम्रद्धि में महान योगदान है | गुरु नानक जी ने पंजाबी भाषा में धर्मोपदेश दिया और वहीं मीराबाई के भजनों ने मथुरा की ब्रज भाषा को सम्रद्ध किया | चैतन्य महाप्रभु एवं उनके अनुयायियों ने बांग्ला भाषा एवं साहित्य को सम्रद्ध कर वैष्णव सम्प्रदाय को पल्लवित किया | मुस्लिम भारतीय वास्तुकला का सुन्दर नमूना वस्तुतः कुतुबमीनार एवं मुगलों के किलों में साफ-साफ देखा जा सकता है |
  


  

Wednesday, July 13, 2011

कुछ बातें........हम और आप

मेरे  ब्लॉग के सभी सुधी पाठकों को स्वागत है................................
मैंने इस ब्लॉग की संकल्पना काफी दिन पहले कर ली थी.लेकिन इस भागमभाग जिंदगी में समय की तंगी के कारण इस संकल्पना को साकार करने में काफी समय लग गया.लेकिन एक मशहूर पुरानी कहावत है देर  आये दुरुस्त  आये .और आज यह ब्लॉग आप सभी के सामने है.मेरा यह ब्लॉग मुकुल  एक्सप्रेस  मेरे गुरु जी की प्रेरणा का नतीजा है.वह अकसर हम सभी छात्रों से कहा करते है कि बेटे लिखना लिखने से आता है.अतः यह ब्लॉग हमारे सर जी डॉ. मुकुल  श्रीवास्तव  को सादर समर्पित है.
अब मैं अपने बारे क्या बताऊ...? ,बचपन में कभी माँ ने सर्वप्रथम मेरे हाथो में एक नन्ही सी पेन्सिल पकड़ाई थी और लिखने के लिए कुछ सादे पन्ने दिए थे,उन पन्नों पर मैंने क्या लिखा माँ आज भी बताती है,कि वह पढ़ नहीं सकी.क्योकि वह चंद उल्टी-सीधी खिची लाईने थी.लेकिन जैसे-जैसे बचपन से युवावस्था में कदम पड़े,तो समझ में आया,कि माँ ही बच्चे की सर्वप्रथम पाठशाला होती है.एक बार माँ द्वारा बचपन में पकड़ायी गयी पेन्सिल आज भी हाथ से नहीं छूटी बस आज कुछ उसका स्वरूप बदल गया है.कभी हाथ में पेन के रूप में,तो कभी कम्प्यूटर का की-बोर्ड और स्क्रीन पर उभरते काले  अक्षर के शब्दों के रूप में,लेकिन शब्द तो शब्द है कुछ न कुछ कह कर जाते है.इन्ही शब्दों के साथ अपने कुछ विचारों के साथ आप सभी पाठकों के सामने उपस्थित हूँ.और आप सभी समय-समय पर अपने विचारों और टिप्पणियों से हमारा मार्गदर्शन करते रहे,जिससे हमारे ये शब्द रुपी विचारों का सही ढंग से प्रस्तुति हो सके.

                                                                                                           ----पत्रकार नन्हा सिहं